हड़प्पा संस्कृति क्या है? परिचय
हड़प्पा संस्कृति, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है, विश्व की सबसे प्राचीन नगरीय सभ्यताओं में से एक थी। इसका नाम पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित हड़प्पा नामक स्थान से पड़ा, जहाँ 1921 में इस सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए थे।
हड़प्पा संस्कृति: महत्वपूर्ण तथ्य
काल: 2600-1900 ईसा पूर्व (परिपक्व अवस्था)
क्षेत्र: पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम भारत, अफगानिस्तान
प्रमुख नगर: हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, कालीबंगा
क्षेत्रफल: 12.5 लाख वर्ग किमी (मिस्र और मेसोपोटामिया से बड़ा)
जनसंख्या: लगभग 5 मिलियन
पूर्व-हड़प्पा काल
मेहरगढ़ संस्कृति, कृषि का आरंभ
प्रारंभिक हड़प्पा काल
नगरों का विकास, व्यापार का विस्तार
परिपक्व हड़प्पा काल
सभ्यता का स्वर्ण युग, उन्नत नगर योजना
उत्तर हड़प्पा काल
सभ्यता का पतन, नगरों का परित्याग
हड़प्पा संस्कृति की विशेषताएं 10 प्रमुख बिंदु
उन्नत नगर योजना
सीधी सड़कें, ग्रिड पैटर्न, नालियों की व्यवस्था, नगर दुर्ग और निचला नगर
जल निकास प्रणाली
घरों में स्नानागार और शौचालय, ईंटों की नालियाँ, मैनहोल की व्यवस्था
महान स्नानागार
मोहनजोदड़ो में विशाल स्नानागार, 11.88 × 7.01 मीटर, जल निकासी की उत्कृष्ट व्यवस्था
अन्नागार
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में विशाल अन्नागार, अनाज संग्रह की उन्नत व्यवस्था
मोहरें
सेलखड़ी की मोहरें, पशु चित्र, लिपि के चिह्न, व्यापार में उपयोग
मानकीकृत माप
वजन और माप की एकरूपता, बाटों का प्रयोग, दशमलव प्रणाली
व्यापार
मेसोपोटामिया, ईरान, अफगानिस्तान से व्यापार, जल और स्थल मार्ग
उद्योग
मिट्टी के बर्तन, मनके, धातु कार्य, बुनाई, मूर्तिकला
स्थापत्य
ईंटों का प्रयोग, दो मंजिला मकान, अग्निकुंड, कुएं
लिपि
400-600 चिह्न, दाएं से बाएं लिखी जाती थी, अभी तक अपठित
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो तुलना (hadappa aur mohanajodado me tulna)
पहलू | हड़प्पा | मोहनजोदड़ो |
---|---|---|
स्थान | पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में रावी नदी के तट पर | पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के तट पर |
खोज | 1921 - दयाराम साहनी | 1922 - राखालदास बनर्जी |
क्षेत्रफल | लगभग 150 हेक्टेयर | लगभग 200 हेक्टेयर |
प्रमुख संरचनाएं | 6 अन्नागार, कब्रिस्तान | महान स्नानागार, विशाल अन्नागार |
विशेषताएं | कब्रिस्तान H, तांबे की वस्तुएं | नृत्यरत बालिका की मूर्ति, पुरोहित का सिर |
विनाश के प्रमाण | कम | अधिक (झुके हुए कंकाल) |
महत्वपूर्ण तथ्य:
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों सिंधु घाटी सभ्यता के जुड़वाँ नगर माने जाते हैं। दोनों में समान नगर योजना, स्थापत्य शैली और सांस्कृतिक विशेषताएं पाई गई हैं। मोहनजोदड़ो हड़प्पा से बड़ा और अधिक विकसित था। दोनों नगरों के बीच लगभग 600 किलोमीटर की दूरी थी, जो इस सभ्यता के विस्तार को दर्शाता है।
हड़प्पा संस्कृति का धर्म धार्मिक जीवन(hadappa sanskriti ka dharm)
पूजा के प्रमाण
- मातृदेवी: मिट्टी की मूर्तियाँ
- पशुपति शिव: तीन मुख वाली मोहर
- लिंग पूजा: पत्थर के लिंग
- वृक्ष पूजा: पीपल के वृक्ष
- पशु पूजा: बैल, हाथी, गैंडा
- अग्नि पूजा: अग्निकुंड
धार्मिक प्रथाएं
- मूर्ति पूजा: मिट्टी और पत्थर की मूर्तियाँ
- ताबीज: रक्षा के लिए ताबीज
- यज्ञ: अग्निकुंडों में यज्ञ
- जादू-टोना: ताबीज और मंत्र
- पुनर्जन्म: कब्रों में वस्तुएं
- शव विसर्जन: दफनाना और जलाना
धार्मिक प्रतीक | विवरण | महत्व |
---|---|---|
पशुपति शिव | तीन मुख वाली मोहर, योगी की मुद्रा में | शिव का आदि रूप, योग और तंत्र का प्रमाण |
मातृदेवी | मिट्टी की मूर्तियाँ, गर्भवती स्त्री | उर्वरता और संतान की देवी |
लिंग और योनि | पत्थर के लिंग और योनि चिह्न | शिव और शक्ति की पूजा |
स्वस्तिक चिह्न | मोहरों और बर्तनों पर | शुभता का प्रतीक |
हड़प्पा संस्कृति की लिपि अपठित रहस्य (hadappa sanskriti ki lipi)
लिपि का स्वरूप
भावचित्रात्मक लिपि, 400-600 चिह्न, दाएं से बाएं लिखी जाती थी
लेखन सामग्री
मोहरें, तांबे की पट्टियाँ, मिट्टी के बर्तन, ताबीज
अपठित क्यों?
द्विभाषी अभिलेख नहीं, छोटे लेख, संदर्भ की कमी
भाषा
द्रविड़ भाषा परिवार की संभावना, मुंडा या अन्य
लिपि का महत्व और चुनौतियाँ:
हड़प्पा लिपि विश्व की प्राचीनतम लिपियों में से एक है, लेकिन अभी तक इसे पढ़ा नहीं जा सका है। इसके अपठित रहने के कई कारण हैं - लेख बहुत छोटे हैं (औसतन 5 चिह्न), द्विभाषी अभिलेख नहीं मिले हैं, और संदर्भ की कमी है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह लिपि भावचित्रात्मक थी और दाएं से बाएं लिखी जाती थी। कंप्यूटर विश्लेषण से पता चला है कि यह लिपि द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित हो सकती है।
हड़प्पा संस्कृति की मूर्तिकला और शिल्पकला (hadappa sanskriti ki murtikala aur shilpkala)
कला का प्रकार | विवरण | उदाहरण |
---|---|---|
मूर्तिकला | पत्थर, कांस्य और मिट्टी की मूर्तियाँ | नृत्यरत बालिका, पुरोहित का सिर, बैल की मूर्ति |
मुहरें | सेलखड़ी की मुहरें, पशु चित्रों के साथ | एक सींग वाला बैल, पशुपति शिव मुहर |
मनके | सोने, चांदी, तांबे और पत्थर के मनके | कार्नेलियन मनके, सोने के मनके |
बर्तन | लाल और काले मिट्टी के बर्तन | पक्षी और पशु चित्रों वाले बर्तन |
खिलौने | मिट्टी के खिलौने, गाड़ियाँ, पशु | बैलगाड़ी, चिड़िया, बंदर |
नृत्यरत बालिका
कांस्य की मूर्ति, 10.5 सेमी ऊँची, नृत्य मुद्रा में, मोहनजोदड़ो से प्राप्त
पुरोहित का सिर
पत्थर की मूर्ति, 18 सेमी ऊँची, दाढ़ी वाला, मोहनजोदड़ो से प्राप्त
एक सींग वाला बैल
सेलखड़ी की मुहर, पौराणिक जानवर, मोहनजोदड़ो से प्राप्त
कार्नेलियन मनके
लाल रंग के मनके, सफेद डिजाइन के साथ, लोथल से प्राप्त
हड़प्पा संस्कृति का पतन अंत के कारण (hadappa sanskriti ka patan, ant ke karan)
प्राकृतिक कारण
- जलवायु परिवर्तन: मानसून का कमजोर होना
- नदियों का सूखना: सरस्वती नदी का सूखना
- बाढ़: सिंधु नदी में बाढ़
- भूकंप: भूगर्भीय परिवर्तन
- मरुस्थलीकरण: थार का विस्तार
मानवजनित कारण
- वनों की कटाई: ईंधन और निर्माण के लिए
- मृदा अपरदन: कृषि का अत्यधिक दोहन
- लवणीकरण: सिंचाई से भूमि का बंजर होना
- आर्यों का आक्रमण: विदेशी आक्रमण
- व्यापार मार्गों में परिवर्तन: आर्थिक संकट
पतन की प्रक्रिया:
हड़प्पा संस्कृति का पतन एक धीमी और क्रमिक प्रक्रिया थी, न कि अचानक विनाश। लगभग 1900 ईसा पूर्व से नगरों का क्रमिक परित्याग शुरू हुआ। नगर योजना और सफाई व्यवस्था बिगड़ने लगी। छोटी-छोटी बस्तियाँ बसने लगीं और अंततः 1300 ईसा पूर्व तक यह सभ्यता लगभग विलुप्त हो गई। हालांकि, इसकी कई सांस्कृतिक विशेषताएं भारतीय उपमहाद्वीप में बाद की संस्कृतियों में जीवित रहीं।
हड़प्पा संस्कृति की नगर योजना (hadappa sanskriti ki nagar yojana)
नगर | वर्तमान स्थान | विशेषताएं | खोजकर्ता |
---|---|---|---|
हड़प्पा | पंजाब, पाकिस्तान | 6 अन्नागार, कब्रिस्तान | दयाराम साहनी (1921) |
मोहनजोदड़ो | सिंध, पाकिस्तान | महान स्नानागार, विशाल अन्नागार | राखालदास बनर्जी (1922) |
लोथल | गुजरात, भारत | गोदीबाड़ा, बाजार, अग्निकुंड | एस. आर. राव (1954) |
कालीबंगा | राजस्थान, भारत | जुते हुए खेत, अग्निवेदिकाएं | ए. घोष (1953) |
धोलावीरा | गुजरात, भारत | जल संचयन व्यवस्था, स्टेडियम | जे. पी. जोशी (1967) |
सुरकोटदा | गुजरात, भारत | किलेबंदी, अश्व के अवशेष | जगपति जोशी (1964) |
हड़प्पा संस्कृति प्रश्नोत्तरी 10 सवाल
1. हड़प्पा संस्कृति का सबसे प्रसिद्ध नगर कौन-सा है?
2. हड़प्पा संस्कृति की लिपि किस दिशा में लिखी जाती थी?
3. मोहनजोदड़ो में कौन-सी प्रसिद्ध संरचना मिली है?
4. हड़प्पावासी किस धातु का प्रयोग करते थे?
5. हड़प्पा संस्कृति का मुख्य व्यवसाय क्या था?
हड़प्पा संस्कृति के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
हड़प्पा संस्कृति, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहते हैं, विश्व की सबसे प्राचीन नगरीय सभ्यताओं में से एक थी। यह 2600-1900 ईसा पूर्व में फली-फूली और इसके अवशेष पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत में मिले हैं। इस सभ्यता की खोज 1921 में हड़प्पा नामक स्थान से हुई, इसलिए इसे हड़प्पा संस्कृति कहा जाता है।
हड़प्पा संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं थीं:
1. उन्नत नगर योजना: सीधी सड़कें, ग्रिड पैटर्न, नगर दुर्ग और निचला नगर
2. जल निकास प्रणाली: घरों में स्नानागार और शौचालय, ईंटों की नालियाँ
3. महान स्नानागार: मोहनजोदड़ो में विशाल स्नानागार
4. अन्नागार: हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में विशाल अन्नागार
5. मोहरें: सेलखड़ी की मोहरें, पशु चित्र, लिपि के चिह्न
6. मानकीकृत माप: वजन और माप की एकरूपता
7. व्यापार: मेसोपोटामिया, ईरान से व्यापार
8. उद्योग: मिट्टी के बर्तन, मनके, धातु कार्य
9. स्थापत्य: ईंटों का प्रयोग, दो मंजिला मकान
10. लिपि: 400-600 चिह्न, दाएं से बाएं लिखी जाती थी
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख नगर थे, लेकिन इनमें कुछ अंतर थे:
स्थान: हड़प्पा पंजाब (पाकिस्तान) में रावी नदी के तट पर स्थित था, जबकि मोहनजोदड़ो सिंध (पाकिस्तान) में सिंधु नदी के तट पर स्थित था।
खोज: हड़प्पा की खोज 1921 में दयाराम साहनी ने की, जबकि मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में राखालदास बनर्जी ने की।
क्षेत्रफल: हड़प्पा लगभग 150 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला था, जबकि मोहनजोदड़ो लगभग 200 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला था।
प्रमुख संरचनाएं: हड़प्पा में 6 अन्नागार और कब्रिस्तान मिले हैं, जबकि मोहनजोदड़ो में महान स्नानागार और विशाल अन्नागार मिले हैं।
विशेषताएं: हड़प्पा में कब्रिस्तान H और तांबे की वस्तुएं मिली हैं, जबकि मोहनजोदड़ो में नृत्यरत बालिका की मूर्ति और पुरोहित का सिर मिला है।
हड़प्पा संस्कृति के पतन के प्रमुख कारण थे:
प्राकृतिक कारण:
- जलवायु परिवर्तन: मानसून का कमजोर होना
- नदियों का सूखना: सरस्वती नदी का सूखना
- बाढ़: सिंधु नदी में बाढ़
- भूकंप: भूगर्भीय परिवर्तन
- मरुस्थलीकरण: थार का विस्तार
मानवजनित कारण:
- वनों की कटाई: ईंधन और निर्माण के लिए
- मृदा अपरदन: कृषि का अत्यधिक दोहन
- लवणीकरण: सिंचाई से भूमि का बंजर होना
- आर्यों का आक्रमण: विदेशी आक्रमण
- व्यापार मार्गों में परिवर्तन: आर्थिक संकट
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