परिचय
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में कई प्रारंभिक राज्यों का उदय हुआ। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण था हर्षवर्धन का साम्राज्य, जिसने 606 ईस्वी से 647 ईस्वी तक शासन किया। हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की और भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया।
परीक्षा दृष्टि से महत्वपूर्ण
हर्षवर्धन और प्रारंभिक राज्यों का विषय UPSC, RPSC, SSC, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछा जाता है। इस अध्याय से प्रश्न राजनीतिक इतिहास, प्रशासनिक व्यवस्था, सांस्कृतिक विकास और अर्थव्यवस्था से संबंधित होते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल था। इस दौरान कई प्रारंभिक राज्यों का उदय हुआ, जिनमें मौखरि, पुष्यभूति और मैत्रक वंश प्रमुख थे। हर्षवर्धन ने इन राज्यों को एकीकृत करके एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
प्रमुख प्रारंभिक राज्य
मौखरि वंश
कन्नौज के शासक, हर्षवर्धन के ससुर
पुष्यभूति वंश
थानेश्वर के शासक, हर्षवर्धन का वंश
मैत्रक वंश
वल्लभी के शासक, गुजरात क्षेत्र
गौड़ वंश
बंगाल के शासक, शशांक का वंश
हर्षवर्धन का साम्राज्य
हर्षवर्धन (606-647 ई.) पुष्यभूति वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था। उसने थानेश्वर और कन्नौज को एकीकृत करके एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। उसके साम्राज्य में उत्तर भारत के अधिकांश भाग शामिल थे।
हर्षवर्धन का राज्याभिषेक
महत्वपूर्ण तथ्य
- हर्षवर्धन ने 16 वर्ष की आयु में शासन संभाला
- उसने अपनी बहन राज्यश्री को मुक्त करवाया
- शशांक के विरुद्ध सफल अभियान चलाया
- कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया
परीक्षा उपयोगी तथ्य
हर्षवर्धन को 'शिलादित्य' के नाम से भी जाना जाता था। उसने अपने साम्राज्य का विस्तार पंजाब से बंगाल तक और हिमालय से नर्मदा नदी तक किया। हर्षवर्धन ने चीनी यात्री ह्वेनसांग का स्वागत किया, जिसने अपने यात्रा वृत्तांत में हर्ष के शासन का विस्तृत वर्णन किया है।
प्रशासनिक व्यवस्था
हर्षवर्धन की प्रशासनिक व्यवस्था केंद्रीकृत थी, लेकिन स्थानीय स्वशासन को भी महत्व दिया जाता था। उसने एक कुशल प्रशासनिक ढांचा विकसित किया जो गुप्त प्रशासन से मिलता-जुलता था।
केंद्रीय प्रशासन
- राजा सर्वोच्च शासक होता था
- मंत्रिपरिषद की सहायता
- सेनापति (सेनाध्यक्ष)
- महाबलाधिकृत (सैन्य अधिकारी)
- सन्धिविग्रहिक (विदेश मंत्री)
- महाक्षपटलिक (लेखा अधिकारी)
प्रांतीय प्रशासन
- साम्राज्य को भुक्तियों में विभाजित
- भुक्ति के प्रमुख को उपरिक कहा जाता था
- भुक्तियाँ विषयों में विभाजित
- विषय के प्रमुख को विषयपति कहा जाता था
- स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था
पद | कार्य | महत्व |
---|---|---|
महासामंत | साम्राज्य के उच्च अधिकारी | राजा के सलाहकार |
कुमारामात्य | प्रशासनिक कार्य | प्रांतीय शासन |
दौसाधिक्षणिक | पुलिस विभाग का प्रमुख | कानून-व्यवस्था |
महादण्डनायक | न्यायिक अधिकारी | न्याय प्रशासन |
अर्थव्यवस्था और समाज
हर्षवर्धन के काल में अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी। व्यापार और वाणिज्य भी विकसित थे। समाज वर्ण व्यवस्था पर आधारित था, लेकिन सामाजिक गतिशीलता बनी हुई थी।
अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्रोत
कृषि
मुख्य आजीविका
व्यापार
आंतरिक और बाह्य
शिल्प
हथकरघा और धातु
कर
राजस्व का स्रोत
सामाजिक संरचना
हर्षकालीन समाज चार वर्णों में विभाजित था - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। महिलाओं की स्थिति सम्मानजनक थी, लेकिन कुछ सामाजिक बंधन थे। शिक्षा का प्रसार था और नालंदा विश्वविद्यालय शिक्षा का प्रमुख केंद्र था।
सांस्कृतिक विकास
हर्षवर्धन के काल में साहित्य, कला और धर्म का महत्वपूर्ण विकास हुआ। हर्षवर्धन स्वयं एक विद्वान और लेखक था। उसने तीन नाटकों की रचना की - नागानंद, रत्नावली और प्रियदर्शिका।
सांस्कृतिक स्वर्ण युग
हर्षवर्धन का काल साहित्य और कला के विकास के लिए जाना जाता है। बाणभट्ट ने हर्षचरित और कादम्बरी की रचना की, जो संस्कृत साहित्य के श्रेष्ठ ग्रंथ माने जाते हैं।
साहित्य
बाणभट्ट - हर्षचरित, कादम्बरी
हर्षवर्धन - नागानंद, रत्नावली, प्रियदर्शिका
मयूर - सूर्यशतक
शिक्षा
नालंदा विश्वविद्यालय UNESCO
वल्लभी विश्वविद्यालय
शिक्षा का व्यापक प्रसार
कला
वास्तुकला का विकास
मूर्तिकला की उन्नति
चित्रकला का विकास
धार्मिक स्थिति
हर्षवर्धन के काल में हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म का समान रूप से प्रचलन था। हर्षवर्धन स्वयं शैव धर्म का अनुयायी था, लेकिन बौद्ध धर्म के प्रति भी उदार था।
धार्मिक सहिष्णुता
धार्मिक उत्सव
हर्षवर्धन प्रत्येक पांच वर्ष में प्रयाग में एक महान धार्मिक सभा का आयोजन करता था, जिसे 'महामोक्ष परिषद' कहा जाता था। इस सभा में हिंदू, बौद्ध और जैन सभी धर्मों के लोग भाग लेते थे। ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में इस सभा का विस्तृत वर्णन किया है।
महत्वपूर्ण व्यक्तित्व
हर्षवर्धन के काल में कई महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हुए, जिन्होंने साहित्य, धर्म और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
नाम | योगदान | महत्व |
---|---|---|
बाणभट्ट | हर्षचरित, कादम्बरी | संस्कृत साहित्य के श्रेष्ठ लेखक |
ह्वेनसांग | सि-यू-की (यात्रा वृत्तांत) | हर्षकालीन भारत का विस्तृत वर्णन |
दिवाकर मित्र | हर्ष के दरबारी कवि | साहित्यिक योगदान |
मयूर | सूर्यशतक | संस्कृत कवि |
पतन और उत्तराधिकारी
हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य शीघ्र ही विघटित हो गया। उसके कोई पुत्र नहीं था, इसलिए साम्राज्य का विघटन हुआ। इसके बाद उत्तर भारत में फिर से छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ।
हर्षवर्धन की मृत्यु
साम्राज्य का विघटन
उत्तर भारत में राजपूत राज्यों का उदय
तुर्क आक्रमण और दिल्ली सल्तनत की स्थापना
ज्ञान परीक्षण
अपने ज्ञान का परीक्षण करें और देखें कि आपने कितना सीखा है।