दिल्ली सल्तनत: एक परिचय
दिल्ली सल्तनत मध्यकालीन भारत का एक महत्वपूर्ण काल था जो 1206 ईस्वी से 1526 ईस्वी तक चला। इस दौरान दिल्ली में पांच वंशों ने शासन किया - गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैय्यद वंश और लोदी वंश। दिल्ली सल्तनत ने भारत के इतिहास, संस्कृति, प्रशासन और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला।
परीक्षा दृष्टि से महत्वपूर्ण
दिल्ली सल्तनत का विषय UPSC, RPSC, SSC, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछा जाता है। इस अध्याय से प्रश्न राजनीतिक इतिहास, प्रशासनिक व्यवस्था, सांस्कृतिक विकास, अर्थव्यवस्था और स्थापत्य कला से संबंधित होते हैं।
दिल्ली सल्तनत के वंश
दिल्ली सल्तनत को पांच प्रमुख वंशों में विभाजित किया जा सकता है, जिन्होंने लगभग 320 वर्षों तक शासन किया।
गुलाम वंश (1206-1290 ई.)
गुलाम वंश दिल्ली सल्तनत का पहला वंश था, जिसकी स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी। इस वंश को 'मामलूक वंश' भी कहा जाता है।
महत्वपूर्ण घटनाएँ:
- कुतुब मीनार का निर्माण प्रारंभ
- चंगेज खान के आक्रमण का सामना
- रजिया सुल्तान - भारत की पहली महिला शासक
- बलबन द्वारा 'सिजदा' और 'पाबोस' प्रथा की शुरुआत
खिलजी वंश (1290-1320 ई.)
खिलजी वंश की स्थापना जलालुद्दीन खिलजी ने की थी। इस वंश के सुल्तानों ने दक्षिण भारत में विस्तार की नीति अपनाई।
महत्वपूर्ण घटनाएँ:
- अलाउद्दीन खिलजी का दक्षिण भारत अभियान
- मंगोल आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना
- बाजार नियंत्रण व्यवस्था की स्थापना
- दाग और हुलिया प्रथा की शुरुआत
तुगलक वंश (1320-1414 ई.)
तुगलक वंश की स्थापना गयासुद्दीन तुगलक ने की थी। इस वंश के शासकों ने कई साहसी प्रशासनिक सुधार किए।
महत्वपूर्ण घटनाएँ:
- राजधानी परिवर्तन (दिल्ली से दौलताबाद)
- सांकेतिक मुद्रा (टोकन करेंसी) का प्रयोग
- फिरोज शाह द्वारा सिंचाई परियोजनाएँ
- तैमूर का आक्रमण (1398 ई.)
सैय्यद वंश (1414-1451 ई.)
सैय्यद वंश की स्थापना खिज्र खान ने की थी। यह वंश तैमूर के आक्रमण के बाद स्थापित हुआ और इसका शासन दिल्ली तक सीमित रहा।
लोदी वंश (1451-1526 ई.)
लोदी वंश दिल्ली सल्तनत का अंतिम वंश था, जिसकी स्थापना बहलोल लोदी ने की थी। यह वंश अफगान मूल का था।
महत्वपूर्ण घटनाएँ:
- आगरा शहर की स्थापना
- सिकंदर लोदी द्वारा गुलरुखी उपनाम से फारसी कविताएँ
- पानीपत का प्रथम युद्ध (1526 ई.)
- बाबर द्वारा दिल्ली सल्तनत का अंत
प्रशासनिक व्यवस्था
दिल्ली सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था केंद्रीकृत थी, जिसमें सुल्तान सर्वोच्च शासक होता था। प्रशासन को केंद्रीय, प्रांतीय और स्थानीय स्तर पर विभाजित किया गया था।
केंद्रीय प्रशासन
- सुल्तान: सर्वोच्च शासक और सेनापति
- वजीर: वित्त मंत्री
- दीवान-ए-अर्ज: सैन्य विभाग
- दीवान-ए-इंशा: पत्र व्यवहार विभाग
- दीवान-ए-रिसालत: धार्मिक और विदेशी मामले
- सद्र-उस-सुदूर: धार्मिक मामलों का प्रमुख
- काजी-उल-कुजात: प्रधान न्यायाधीश
प्रांतीय प्रशासन
- इक्ता प्रणाली: भू-राजस्व वितरण
- वली/मुक्ती: प्रांत का गवर्नर
- शिकदार: कानून-व्यवस्था का प्रमुख
- आमिल: भू-राजस्व संग्रहकर्ता
- कोतवाल: शहर का प्रशासनिक अधिकारी
- मुंसिफ-ए-मुमालिक: मुख्य लेखा अधिकारी
इक्ता प्रणाली
इक्ता प्रणाली दिल्ली सल्तनत की एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था थी। इसके अंतर्गत सुल्तान भू-राजस्व के बदले में सैनिकों और अधिकारियों को जागीरें प्रदान करता था। इल्तुतमिश ने इस प्रणाली को संगठित रूप दिया, जबकि अलाउद्दीन खिलजी और फिरोज शाह तुगलक ने इसमें सुधार किए।
अर्थव्यवस्था
दिल्ली सल्तनत की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी, लेकिन व्यापार और उद्योग भी विकसित थे। सल्तनत काल में भू-राजस्व प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार किए गए।
अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्रोत
कृषि
मुख्य आजीविका और राजस्व स्रोत
व्यापार
आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
शिल्प
वस्त्र, धातु और कागज उद्योग
कर प्रणाली
जकात, खराज, जजिया कर
अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति
अलाउद्दीन खिलजी ने एक क्रांतिकारी बाजार नियंत्रण नीति लागू की, जिसमें वस्तुओं के मूल्य निर्धारित किए गए। उसने 'दीवान-ए-रियासत' नामक एक नया विभाग स्थापित किया और 'शहना-ए-मंडी' की नियुक्ति की। इस नीति के तहत अनाज, कपड़ा, घोड़े और गुलामों की कीमतें तय की गईं।
समाज और संस्कृति
दिल्ली सल्तनत काल में भारतीय समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इस दौरान हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों का समन्वय हुआ और एक नई मिश्रित संस्कृति का विकास हुआ।
सांस्कृतिक समन्वय
दिल्ली सल्तनत काल में भारतीय और इस्लामी संस्कृतियों का समन्वय हुआ, जिससे एक नई मिश्रित संस्कृति का विकास हुआ। इस दौरान सूफी और भक्ति आंदोलनों ने समाज को प्रभावित किया।
साहित्य
अमीर खुसरो - हिंदवी और फारसी साहित्य
जियाउद्दीन बरनी - तारीख-ए-फिरोजशाही
मिन्हाज-उस-सिराज - तबकात-ए-नासिरी
फिरोज शाह तुगलक - फतुहात-ए-फिरोजशाही
संगीत और कला
अमीर खुसरो द्वारा खयाल और कव्वाली का विकास
सितार और तबले का आविष्कार
लोक संगीत और नृत्य का विकास
मुस्लिम और हिंदू कला शैलियों का समन्वय
सामाजिक संरचना
हिंदू और मुस्लिम समाज का सह-अस्तित्व
सूफी और भक्ति संतों का प्रभाव
उर्दू भाषा का विकास
विभिन्न जातियों और समुदायों का एकीकरण
स्थापत्य कला
दिल्ली सल्तनत काल में भारतीय स्थापत्य कला में महत्वपूर्ण विकास हुआ। इस दौरान भारतीय और इस्लामी स्थापत्य शैलियों का समन्वय हुआ और एक नई 'इंडो-इस्लामिक' शैली का विकास हुआ।

कुतुब मीनार
कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा निर्माण प्रारंभ और इल्तुतमिश द्वारा पूर्ण। विश्व की सबसे ऊँची ईंटों की मीनार।

अलाई दरवाजा
अलाउद्दीन खिलजी द्वारा निर्मित, भारत में इस्लामिक स्थापत्य कला का प्रथम शुद्ध उदाहरण।

तुगलकाबाद किला
गयासुद्दीन तुगलक द्वारा निर्मित, तुगलक वंश की राजधानी। विशाल दीवारों और बुर्जों वाला किला।
स्थापत्य की विशेषताएँ
दिल्ली सल्तनत काल की स्थापत्य कला में मेहराब, गुम्बज, मीनार और बुर्ज का प्रयोग किया गया। इमारतों में लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर का उपयोग हुआ। सजावट के लिए ज्यामितीय डिजाइन, अरबी लिपि और पुष्प अलंकरण का प्रयोग किया गया। इस काल में मस्जिदों, मकबरों, मदरसों और सरायों का निर्माण हुआ।
दिल्ली सल्तनत का पतन
दिल्ली सल्तनत का पतन कई कारणों से हुआ, जिनमें आंतरिक कमजोरियाँ, प्रशासनिक दोष और बाहरी आक्रमण प्रमुख थे।
पतन के कारण
- कमजोर उत्तराधिकारी
- प्रशासनिक अक्षमता
- साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार
- आर्थिक संकट
- तैमूर का आक्रमण
- क्षेत्रीय राज्यों का उदय
पतन के परिणाम
- मुगल साम्राज्य की स्थापना
- क्षेत्रीय राज्यों का स्वतंत्र होना
- भारत में नई सांस्कृतिक धाराओं का प्रवेश
- प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन
- अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन
पानीपत का प्रथम युद्ध (1526 ई.)
1526 ई. में बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ, जिसमें इब्राहिम लोदी की हार हुई और दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया। इस युद्ध में बाबर ने 'तुलगमा' युद्ध नीति और तोपखाने का प्रभावी ढंग से उपयोग किया। इस युद्ध के बाद भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई।
ज्ञान परीक्षण
अपने ज्ञान का परीक्षण करें और देखें कि आपने कितना सीखा है।