ब्रिटिश काल में राजस्थान का परिचय
ब्रिटिश काल (1818-1947 ई.) में राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण परिवर्तन आए। इस काल में राजस्थान के रजवाड़ों और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच संबंधों ने राजस्थान की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया। 1818 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी और राजपूत रियासतों के बीच संधियों के बाद राजस्थान में ब्रिटिश प्रभाव का दौर शुरू हुआ।
1818 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी और मेवाड़ रियासत के बीच हुई संधि ने राजस्थान में ब्रिटिश आधिपत्य की शुरुआत की, जिसके बाद अन्य रियासतों ने भी संधियाँ कीं।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और राजस्थान के रजवाड़े
1. संधि प्रक्रिया की शुरुआत
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-1818) के बाद राजस्थान की रियासतों के साथ संधियाँ करनी शुरू कीं। सबसे पहले 13 जनवरी, 1818 को मेवाड़ के महाराणा भीम सिंह के साथ संधि हुई।
परीक्षा उपयोगी तथ्य
पहली संधि: मेवाड़ के साथ 13 जनवरी, 1818 को हुई थी
अंतिम संधि: जैसलमेर के साथ 12 दिसंबर, 1818 को हुई थी
एजेंट टू गवर्नर जनरल: राजस्थान में ब्रिटिश प्रतिनिधि को कहा जाता था
2. प्रमुख संधियाँ और उनके प्रावधान
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने विभिन्न रियासतों के साथ अलग-अलग शर्तों पर संधियाँ कीं, लेकिन कुछ सामान्य प्रावधान सभी संधियों में शामिल थे:
रियासत | संधि की तिथि | शासक | महत्वपूर्ण प्रावधान |
---|---|---|---|
मेवाड़ | 13 जनवरी, 1818 | महाराणा भीम सिंह | ब्रिटिश सुरक्षा, वार्षिक कर |
जोधपुर | 6 जनवरी, 1818 | महाराजा मान सिंह | सैन्य सहायता, कर संग्रह |
जयपुर | 2 अप्रैल, 1818 | महाराजा जगत सिंह | ब्रिटिश संरक्षण, सैन्य व्यवस्था |
बीकानेर | 9 मार्च, 1818 | महाराजा सूरत सिंह | सैन्य सहायता, वार्षिक कर |
कोटा | 26 दिसंबर, 1817 | महाराव उम्मेद सिंह | सैन्य व्यवस्था, संरक्षण |
बूंदी | 10 फरवरी, 1818 | महाराव विष्णु सिंह | ब्रिटिश सुरक्षा, कर व्यवस्था |
जैसलमेर | 12 दिसंबर, 1818 | महारावल मूलराज | सैन्य सहायता, संरक्षण |
3. ब्रिटिश नीतियों का प्रभाव
ब्रिटिश संधियों के बाद राजस्थान की रियासतों की स्वायत्तता सीमित हो गई। ब्रिटिश रेजीडेंटों ने रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। इससे रियासतों की संप्रभुता प्रभावित हुई और ब्रिटिश हितों की पूर्ति के लिए नीतियाँ बनाई जाने लगीं।
महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएँ और आंदोलन
तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध
मराठों की पराजय के बाद राजस्थान में ब्रिटिश प्रभाव बढ़ा
संधि वर्ष
राजस्थान की सभी प्रमुख रियासतों ने ब्रिटिशों के साथ संधियाँ कीं
अजमेर में ब्रिटिश एजेंसी
अजमेर में एजेंट टू गवर्नर जनरल का कार्यालय स्थापित
1857 का विद्रोह
राजस्थान में विद्रोह: नसीराबाद, नीमच, एरिनपुरा, देवली
बिजोलिया किसान आंदोलन
साधु सीताराम दास के नेतृत्व में किसानों का आंदोलन
भारतीय स्वतंत्रता
राजस्थान की रियासतों का भारत में विलय
1857 का विद्रोह और राजस्थान
1857 के विद्रोह में राजस्थान ने भी सक्रिय भाग लिया। नसीराबाद, नीमच, एरिनपुरा और देवली छावनियों में सैनिकों ने विद्रोह किया। कोटा में जयदयाल और मेहराब खान ने विद्रोह का नेतृत्व किया। ब्रिटिश सेना ने इन विद्रोहों को दबा दिया, लेकिन इसने राजस्थान में ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को मजबूत किया।
परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न: 1857 के विद्रोह में राजस्थान के किन छावनियों ने भाग लिया?
उत्तर: नसीराबाद, नीमच, एरिनपुरा और देवली छावनियों ने 1857 के विद्रोह में भाग लिया।
सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन
1. प्रशासनिक परिवर्तन
ब्रिटिश काल में राजस्थान में प्रशासनिक ढाँचे में महत्वपूर्ण परिवर्तन आए। ब्रिटिश रेजीडेंटों ने रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू किया। न्यायिक और राजस्व व्यवस्था में सुधार किए गए, लेकिन ये सुधार मुख्यतः ब्रिटिश हितों की पूर्ति के लिए थे।
2. आर्थिक प्रभाव
ब्रिटिश आर्थिक नीतियों ने राजस्थान की पारंपरिक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। कृषि और हस्तशिल्प पर आधारित अर्थव्यवस्था का पतन हुआ। नई भू-राजस्व व्यवस्था लागू की गई, जिसने किसानों पर कर का बोझ बढ़ाया।
3. सामाजिक परिवर्तन
ब्रिटिश काल में सामाजिक सुधार आंदोलनों ने जोर पकड़ा। सती प्रथा, बाल विवाह, और छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई जाने लगी। अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार हुआ और नए विचारों का आगमन हुआ।
महत्वपूर्ण तथ्य
अजमेर-मेरवाड़ा: एकमात्र क्षेत्र जो सीधे ब्रिटिश शासन के अधीन था
राजपूताना एजेंसी: 1832 में स्थापित, जिसमें 20 रियासतें शामिल थीं
चार्ल्स मेटकाफ: राजपूताना का पहला एजेंट टू गवर्नर जनरल
राजस्थान में स्वतंत्रता आंदोलन
ब्रिटिश काल के अंतिम चरण में राजस्थान में स्वतंत्रता आंदोलन तेज हुआ। विजय सिंह पथिक, अर्जुन लाल सेठी, जोरावर सिंह बारहठ और कन्हैया लाल सेठिया जैसे नेताओं ने राजस्थान में राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूत किया। प्रजामंडल आंदोलन ने रियासतों में जनजागरण का कार्य किया।
प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और उनका योगदान
नाम | रियासत | योगदान |
---|---|---|
विजय सिंह पथिक | बिजोलिया | बिजोलिया किसान आंदोलन, प्रजामंडल |
अर्जुन लाल सेठी | जयपुर | राजनीतिक जागरण, शिक्षा |
जोरावर सिंह बारहठ | शाहपुरा | क्रांतिकारी गतिविधियाँ |
कन्हैया लाल सेठिया | बूंदी | साहित्य के माध्यम से राष्ट्रवाद |
मोहन लाल सुखाड़िया | उदयपुर | प्रजामंडल आंदोलन |
जमनालाल बजाज | जयपुर | राष्ट्रीय आंदोलन में आर्थिक सहयोग |
परीक्षा नोट्स
प्रजामंडल
राजस्थान की रियासतों में लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए चलाए गए आंदोलन। पहला प्रजामंडल 1927 में बिजोलिया में स्थापित हुआ।
बिजोलिया किसान आंदोलन
1913-1941 तक चला किसान आंदोलन, जिसने लाग-बाग और बेगार प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया।
चरखा आंदोलन
राजस्थान में खादी और स्वदेशी का प्रचार-प्रसार। जमनालाल बजाज ने इस आंदोलन को बढ़ावा दिया।