राजस्थानी भाषा: एक परिचय
राजस्थानी भाषा भारत की प्रमुख भाषाओं में से एक है जो राजस्थान राज्य और आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है। यह भाषा इंडो-आर्यन भाषा परिवार की पश्चिमी शाखा से संबंधित है और हिंदी के करीब है। राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लंबे समय से की जा रही है।
महत्वपूर्ण तथ्य
भाषा परिवार: इंडो-यूरोपियन > इंडो-ईरानियन > इंडो-आर्यन
वक्ताओं की संख्या: लगभग 8 करोड़
मुख्य क्षेत्र: राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश
ऐतिहासिक काल: 11वीं शताब्दी से वर्तमान
राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ
राजस्थानी भाषा की कई बोलियाँ हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाती हैं। इन बोलियों में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विविधता झलकती है।
मारवाड़ी सबसे प्रसिद्ध
मुख्य विशेषताएँ
- 'ह' ध्वनि का प्रयोग अधिक
- क्रिया रूपों में विशिष्टता
- लोक साहित्य की समृद्ध परंपरा
- व्यापार और वाणिज्य में महत्वपूर्ण भूमिका
मारवाड़ी राजस्थान की सबसे प्रसिद्ध और व्यापक रूप से बोली जाने वाली बोली है। यह न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत में व्यापारिक भाषा के रूप में प्रसिद्ध है। मारवाड़ी समुदाय ने देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
मेवाड़ी उदयपुर
मुख्य विशेषताएँ
- संस्कृत शब्दों का अधिक प्रयोग
- महाराणा प्रताप और मेवाड़ के इतिहास से जुड़ाव
- लोकगीतों और कथाओं में समृद्ध
- वीर रस की प्रधानता
मेवाड़ी बोली मेवाड़ क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर है। इस बोली में महाराणा प्रताप और चित्तौड़गढ़ के इतिहास की झलक मिलती है। मेवाड़ी बोली में लोकगीत, कथाएँ और साहित्य की समृद्ध परंपरा रही है।
हाड़ौती हाड़ौती
मुख्य विशेषताएँ
- मधुर और सरल उच्चारण
- क्रिया रूपों में विशिष्टता
- लोक साहित्य की समृद्ध परंपरा
- हाड़ा राजपूतों के इतिहास से संबंध
हाड़ौती बोली हाड़ौती क्षेत्र में बोली जाती है जिसका ऐतिहासिक रूप से हाड़ा राजपूतों से गहरा संबंध रहा है। इस बोली का उच्चारण मधुर और सरल है। हाड़ौती बोली में लोक साहित्य की समृद्ध परंपरा है।
ढूँढाड़ी
जयपुर, अलवर, दौसा, टोंक
मेवाती
अलवर, भरतपुर
बागड़ी
डूंगरपुर, बांसवाड़ा
शेखावाटी
सीकर, झुंझुनू, चुरू
राजस्थानी साहित्य का इतिहास
राजस्थानी साहित्य का इतिहास अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण है। इसका विकास कई चरणों में हुआ है:
साहित्यिक काल विभाजन
- आदिकाल (1000-1450 ई.) - चारण साहित्य, वीरगाथाएँ
- मध्यकाल (1450-1850 ई.) - भक्ति साहित्य, सूफी साहित्य
- आधुनिक काल (1850-वर्तमान) - गद्य साहित्य, आधुनिक विधाएँ
आदिकालीन साहित्य
आदिकाल में राजस्थानी साहित्य मुख्यतः चारण और भाट कवियों द्वारा रचित वीरगाथाओं तक सीमित था। इन कवियों ने शासकों की वीरता, युद्धों और दानशीलता का वर्णन किया। प्रमुख रचनाएँ:
रचना | रचनाकार | विषय | काल |
---|---|---|---|
पृथ्वीराज रासो | चंदबरदाई | पृथ्वीराज चौहान का जीवन | 12वीं शताब्दी |
बीसलदेव रासो | नरपति नाल्ह | बीसलदेव चौहान की कथा | 13वीं शताब्दी |
खुमाण रासो | दलपति विजय | खुमाण चौहान की वीरगाथा | 13वीं शताब्दी |
मध्यकालीन साहित्य
मध्यकाल में राजस्थानी साहित्य में भक्ति और सूफी धाराओं का प्रवेश हुआ। इस काल में मीराबाई, दादू दयाल, जाम्भोजी जैसे संत-कवियों ने भक्ति साहित्य को समृद्ध किया।
भक्ति साहित्य
- मीराबाई - पद और भजन
- दादू दयाल - दादूपंथ की स्थापना
- जाम्भोजी - विश्नोई सम्प्रदाय
- लालदास - लालदासी सम्प्रदाय
सूफी साहित्य
- शाह अब्दुल करीम - प्रेमाख्यान
- शाह हुसैन - सूफी काव्य
- कुतुबन - मृगावती की रचना
- मंझन - मधुमालती की रचना
आधुनिक साहित्य
आधुनिक काल में राजस्थानी साहित्य में गद्य विधाओं का विकास हुआ। उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध आदि विधाओं में रचनाएँ लिखी गईं। सूर्यमल्ल मिश्रण, मुंशी देवीप्रसाद, हरिभाऊ उपाध्याय जैसे लेखकों ने आधुनिक राजस्थानी साहित्य को समृद्ध किया।
वंश भास्कर
सूर्यमल्ल मिश्रण
ऐतिहासिकवीर साथ
मुंशी देवीप्रसाद
उपन्यासजसवंत विलास
कविराजा मुरारीदान
काव्यराजस्थानी भाषा और साहित्य
डॉ. हीरालाल माहेश्वरी
आलोचनाप्रमुख राजस्थानी साहित्यकार और उनकी रचनाएँ
साहित्यकार | रचनाएँ | विशेषता | काल |
---|---|---|---|
मीराबाई | पदावली, गीत गोविन्द की टीका | कृष्ण भक्ति कवयित्री | 16वीं शताब्दी |
सूर्यमल्ल मिश्रण | वंश भास्कर, बलवन्त विलास | ऐतिहासिक कवि | 19वीं शताब्दी |
कन्हैयालाल सेठिया | लिली, दुर्गावती, अभिशाप | आधुनिक कवि | 20वीं शताब्दी |
विजयदान देथा | बातरी फुलवारी, उलझन | कहानीकार | 20वीं शताब्दी |
हीरालाल शास्त्री | राजस्थानी भाषा का इतिहास | भाषा विज्ञानी | 20वीं शताब्दी |
मोहन आलोक | राजस्थानी साहित्य का इतिहास | साहित्य इतिहासकार | 20वीं शताब्दी |
राजस्थानी भाषा का व्याकरण
राजस्थानी भाषा का अपना एक समृद्ध व्याकरण है जो संस्कृत और प्राकृत के नियमों से प्रभावित है।
विशेषताएँ
- लिंग, वचन और कारक की व्यवस्था
- क्रिया के रूप संस्कृत से मिलते-जुलते
- संज्ञा के तीन लिंग - पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग
- वचन - एकवचन और बहुवचन
- कारक - आठ प्रकार के कारक
हिंदी से अंतर
- कुछ विशिष्ट ध्वनियाँ और उच्चारण
- क्रिया रूपों में भिन्नता
- शब्दावली में स्थानीय शब्दों का प्रयोग
- वाक्य संरचना में अंतर
- मुहावरे और लोकोक्तियों की विशिष्टता
महत्वपूर्ण व्याकरणिक बिंदु
राजस्थानी में संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग
क्रिया के रूप हिंदी से भिन्न होते हैं
कुछ बोलियों में संज्ञा के रूप बदलते हैं
सर्वनाम प्रणाली हिंदी से अलग है
राजस्थानी भाषा की वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
राजस्थानी भाषा आज विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रही है। हालांकि इसे बचाने और बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं।
मुख्य चुनौतियाँ
- हिंदी और अंग्रेजी का बढ़ता प्रभाव
- नई पीढ़ी में राजस्थानी भाषा के प्रति कम रुचि
- शिक्षा और प्रशासन में सीमित उपयोग
- संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल न होना
- मानकीकरण की कमी
संरक्षण के प्रयास
- राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की स्थापना
- विश्वविद्यालय स्तर पर राजस्थानी विभाग
- राजस्थानी फिल्मों और नाटकों का निर्माण
- राजस्थानी साहित्य सम्मेलनों का आयोजन
- डिजिटल माध्यमों पर राजस्थानी सामग्री
ज्ञान परीक्षण
1. राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग कब से की जा रही है?
2. 'पृथ्वीराज रासो' के रचनाकार कौन हैं?